Indore news- 2010 से लापता सैनिक सुरेंद्र सिंह सोलंकी के परिवार को न्याय दिलाने में इंदौर हाईकोर्ट ने अहम भूमिका निभाई। कोर्ट ने सेना के अधिकारियों के रवैये पर नाराजगी जताते हुए कहा कि एक सैनिक के लापता या मृत हो जाने पर उसके परिवार को बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए।
सुरेंद्र सिंह सोलंकी, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के निवासी थे। 2001 में सिग्नल मैन के रूप में भर्ती हुए सुरेंद्र सिंह को 2010 में गोवा में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। ट्रेनिंग के दौरान 25 जुलाई 2010 को वे लापता हो गए थे। उनकी लापता होने की खबर आज तक अनसुलझी है।
कानूनी प्रक्रिया और समस्याएं
कानूनी रूप से, अगर कोई व्यक्ति सात साल तक लापता रहता है तो उसे मृतक मान लिया जाता है। हालांकि, सुरेंद्र सिंह सोलंकी के परिवार को इस प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी और वे सिविल डेथ क्लेम करने में असफल रहे। 2020 में, उन्होंने मंदसौर कोर्ट में सिविल डेथ का दावा किया, परंतु कोर्ट ने दावा लगाने की तारीख को ही मृत्यु तिथि मान लिया। इस फैसले को चुनौती देने पर अपर सत्र न्यायाधीश से भी राहत नहीं मिली।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप
2023 में, सुरेंद्र सिंह सोलंकी के माता-पिता ने इंदौर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके वकील, एडवोकेट नितिन सिंह भाटी ने हाईकोर्ट को तर्क दिया कि सैनिक की मृत्यु तिथि 25 जुलाई 2010 मानी जानी चाहिए, जो सेना के रिकॉर्ड में दर्ज है।
हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल वर्मा ने दोनों पक्षों को सुन कर आदेश दिया की सुरेंद्र सिंह सोलंकी की मृत्यु तिथि 25 जुलाई 2010 को मानते हुए उनके परिवार को इस तिथि से पेंशन और अन्य सुविधाएं देने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि भविष्य में ऐसे मामलों में सैनिकों के परिवारों के साथ इंसाफ किया जाए और उन्हें बेवजह परेशान न किया जाए।
यह फैसला लापता सैनिकों के परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि उन्हें उचित सम्मान और न्याय मिले। इस आदेश ने सुरेंद्र सिंह सोलंकी के परिवार के साथ-साथ अन्य ऐसे परिवारों को भी राहत प्रदान की है, जो अपने प्रियजनों की मृत्यु की पुष्टि के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इंदौर हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल सुरेंद्र सिंह सोलंकी के परिवार के लिए एक न्याय की जीत है, बल्कि यह भी एक महत्वपूर्ण संदेश है कि हमारे सैनिकों के परिवारों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। सेना को अपने सैनिकों और उनके परिवारों के प्रति संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए, ताकि वे अपनी सेवाओं के बाद सम्मानित जीवन जी सकें।